Tuesday, November 18, 2014

अगुआ बनने की कोशिश मत करना

*अगुआ बनने की कोशिश मत करना *

मुद्दा तुम्हारा,मंच तुम्हारा
और भीड़ भी तुम्हारी ही
लेकिन अगुआ बनने का कभी
मत करना कोशिश तुम अपने समाज का
अगुआ बनने का हक नहीं है तुम्हारा
दोपहर की तपती धूप में
नाचना-गाना होगा तुम्हें
और धोकर पांव हमारा
पहनाना फूलों का हार हमें
यह नियति हैं तुम्हारी
तुम्हें सुनना होगा दर्द अपना
पवित्र मुख से हमारा
और गलत व्यख्यान को भी हमारा
लगाना होगा दिल से तुम्हें
तालियां भी बजाना होगा तुम्हें
भीख मांगकर पैसा बटोरोगे तुम
और मुट्ठीभर चावल भी लाना होगा तुम्हें ही
लेकिन याद रखना
सिर्फ़ तालियों से काम नहीं चलेगा
करना जिंदाबाद भी
यह हक है हमारा
तुम्हारे दुख-दर्द और पीड़ा को
शब्दों में बयान कर
दुनिया में बटोरेंगे यश हम
और बनेंगे मसीहा भी तुम्हारा
बनने की अगुआ समाज का अपने
कल्पना मत करना कभी
बना देंगे तुम्हें हम
अपराधी,भ्रष्टाचारी और देशद्रोही
तुम्हारी भाषा हमें नहीं आती है तो क्या
किताबों में भी तुम्हारा
होगा नाम हमारा ही
पाप की गंगोत्री में डूबकर भी
अगुआ होंगे हम
पवित्र समाज का तुम्हारा
अगुआ बनने की कभी कोशिश मत करना
अगुआ बनने का हक नहीं है तुम्हारा।

-ग्लैंडसन डुंगडुंग जी की कविता

No comments:

Post a Comment