Monday, November 17, 2014

गाँव चले हम

गाँव चले हम...

नाकाम तो वैसे
हम थे ही नहीं
लेकिन मुकाम
मानो दूर है कहीं

शिक्षा से होगा
असरदार कुछ तो
लेकिन कक्षाए खाली
बच्चे खदान में है कहीं

मिट्टी का दामन
वैसे हम छोड़ते नहीं
लेकिन इंसान की हालत
रुला ना दे कही

मेरे गाँव की ममता
शहरों में दिखती नहीं
बंद दरवाजे बंगलो के
इंसानियत मजबूर है कहीं

मिठास में जिए हरपल
दुःख की गुंजाइश नही
गाँव चले है हम
शायद जिंदगी मिलेगी वही

-राजू ठोकळ
©www.rajuthokal.com

राजू ठोकळ

No comments:

Post a Comment